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Friday, January 20, 2012

डिजिटल दौर का शिकार बन गई कोडक कंपनी

मुंबई.(देश दुनिया). कोडक वह कंपनी है, जिसने बीसवीं शताब्दी में फोटोग्राफी की दुनिया में राज किया था, यहां तक कि किसी घटना या व्यक्ति का फोटोग्राफ खींचने को ही ‘कोडक मोमेन्ट’ या ‘कोडक क्षण’ कहा जाने लगा था। यह जायज भी था, क्योंकि कोडक ने ही फोटोग्राफी को आम लोगों की जद में ला दिया था। 
  एक दौर था, जब फोटोग्राफी की फिल्म का लगभग 90 प्रतिशत बाजार कोडक के कब्जे में था। कोडक कंपनी डिजिटल दौर का शिकार बन गई। डिजिटल कैमरे, प्रिंटर वगैरा के बाजार में कोडक उतरी तो, लेकिन वह इस तेजी से बदलती तकनीक की रफ्तार से दौड़ नहीं पाई और पिछड़ गई। उसका खर्च बढ़ता गया और मुनाफा सिमटता गया, पिछले चार वर्ष से घाटा उठाने के बाद अब उसने दिवालिया घोषित किए जाने के लिए अर्जी दी है।
  यह कंपनी आज से 120 वर्ष पहले 1892 में जॉर्ज ईस्टमैन ने अमेरिका में शुरू की थी। तब तक फोटोग्राफी काफी महंगा व्यवसाय थी, शौक तो वह थी ही नहीं, क्योंकि शौकिया लोग भी महंगे कैमरे, फिल्म और बाकी उपकरण नहीं खरीद सकते थे। ईस्टमैन की व्यापारिक नीति यह थी कि सस्ते कैमरे बहुत कम मुनाफे पर बेचे जाएं और असली मुनाफा फोटोग्राफी रोल, डेवलप करने के कागज और रसायन बेचकर कमाया जाए। एक बार कोडक की गाड़ी चल निकली, तो लगभग एक शताब्दी तक उसका इस बाजार में एकाधिकार रहा।
व्यापार के जानकार यह मानते हैं कि इसी एकाधिकार के चलते कोडक आने वाली डिजिटल क्रांति के खतरों से बेखबर रही और तभी सचेत हुई, जब पानी सिर से ऊपर निकल गया। कोडक ने बीसवीं शताब्दी के आखिरी दशक में डिजिटल कैमरे बनाना शुरू किया और ठीक-ठाक स्थिति हासिल कर ली, लेकिन तब तक सेल फोन और टेबलेट के कैमरों ने डिजिटल कैमरों की जरूरत बेहद कम कर दी। 
   कोडक ने नए जमाने के मुताबिक नए उत्पाद विकसित करने के लिए अरबों डॉलर फूंक डाले, लेकिन शायद इक्कीसवीं शताब्दी उसकी शताब्दी थी नहीं। फोटोग्राफी फिल्म का उसका व्यापार सिकुड़ता रहा और दूसरे किसी व्यापार में उसे खास कामयाबी नहीं मिली। कोडक के कर्ताधर्ता यह सोच नहीं पाए कि फोटोग्राफी फिल्म का व्यापार इतनी तेजी से सिकुड़ेगा कि उन्हें संभलने का मौका नहीं मिलेगा।
   कोडक का दिवालिया होना फोटोग्राफी के एक स्वर्णिम युग की समाप्ति है। पिछली शताब्दी की ऐतिहासिक घटनाएं, चाहे वह दूसरा विश्व युद्ध हो या भारत का स्वतंत्रता संग्राम, बर्लिन में रूसी सेना का घुसना हो या बर्लिन की दीवार का गिरना, ये सारी घटनाएं कोडक की फिल्मों पर रिकॉर्ड की गईं। इंसान ने जब चांद के धरातल पर पहला कदम रखा, तो वह घटना भी कोडक की फिल्म पर रिकॉर्ड की गई। कोडक ने सिनेमा में 35 मिलीमीटर की बेहतरीन फिल्म बनाई। 16 मिलीमीटर और 8 मिलीमीटर की रीलें भी कोडक के कारखाने में ही बननी शुरू हुई थीं।
  रंगीन फिल्मों पर जो ईस्टमैन कलर लिखा होता है, वह कोडक संस्थापक जॉर्ज ईस्टमैन के नाम से ही है। लेकिन अब सिनेमा में भी तेजी से डिजिटल युग आ रहा है। परंपरागत सैल्यूलाइड की रील पर अब भी कुछ लोग फिल्म शूट करते हैं, लेकिन इसका दौर खत्म हो रहा है। अब सिनेमाघरों में भी फिल्में डिजिटल टेक्नोलॉजी के जरिये दिखाई जाती हैं। जो ऐतिहासिक व महान फोटोग्राफ या फिल्में कोडक की रीलों पर उतारी गई हैं, वे भी अब हम डिजिटल रूप में ही देखते हैं।


प्रस्तुति: दीपक खोखर 

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