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Thursday, August 18, 2011

हैप्पी बर्थ डे संपूर्ण सिंह गुलज़ार

मुंबई. (देश दुनिया). मुशायरों और महफिलों से मिली शोहरत तथा कामयाबी ने कभी मोटर मैकेनिक का काम करने वाले गुलजार को पिछले चार दशक में फिल्म जगत का एक अजीम शायर और गीतकार बना दिया है। पश्चिमी पंजाब के झेलम जिले, अब पाकिस्तान, के दीना गांव में 18 अगस्त 1936 को जन्मे संपूर्ण सिंह उर्फ गुलजार ने न सिर्फ गीतकार के रूप मे बल्कि लेखक, निर्माता और निर्देशक के रूप मे भी बालीवुड मे अपना विशेष योगदान दिया है। बचपन के दिनों से ही शेर-ओ-शायरी का शौक रखने वाले गुलजार अंताक्षरी के कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेते थे। उन्हें गीत संगीत के प्रति खासी रुचि थी। वह रवि शंकर और अली अकबर खान के कार्यक्रम सुनने के लिए जाया करते थे। वर्ष 1947 मे देश के विभाजन के बाद उनका परिवार अमृतसर चला आया। इसके बाद अपने सपनो को नया रूप देने के लिए गुलजार मुंबई आ गए लेकिन सपनों की नगरी में उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अपने जीवन यापन के लिए उन्होंने मोटर गैराज मे एक मैकेनिक की नौकरी भी की। इसके बाद कवि के रूप मे गुलजार प्रोग्रेसिव रायर्टस एसोसिएशन पी.डब्लू.ए से जुड़ गए। उन्होंने अपने सिने कैरियर की शुरूआत वर्ष 1961 मे विमल राय के सहायक के रूप में की। गुलजार ने हृकेश मुखर्जी और हेमन्त कुमार के सहायक के तौर पर भी काम किया।
      गीतकार के रूप मे गुलजार ने पहला गाना, मेरा गोरा अंग लेई ले, वर्ष 1963 में प्रदर्शित विमल राय की फिल्म बंदिनी के लिए लिखा। हालांकि फिल्म, काबुलीवाला, बंदिनी से पहले ही प्रदर्शित हो गई जिसमे उनका लिखा गाना ऐ मेरे प्यारे वतन और गंगा आए कहां से, आज भी ऑल टाइम्स ग्रेटेस्ट सोंग के रूप मे याद किया जाता है। इसके बाद गुलजार ने पीछे मुडकर नहीं देखा। उन्होंने एक से बढ़कर एक गीत लिखकर जन जन के हृदय के तार झनझनाए और उन्हें भाव विभोर कर फिल्मी गीत गंगा को समृद्ध किया।
गुलजार ने वर्ष 1971 मे फिल्म मेरे अपने के जरिए निर्देशन के क्षेत्र मे भी कदम रखा। इस फिल्म की सफलता के बाद गुलजार ने कोशिश, परिचय, अचानक, खूशबू, आंधी, मौसम, किनारा, किताब, मीरा, नमकीन, अंगूर, इजाजत, लिबास, लेकिन, माचिस और हू तू तू जैसी कई फिल्में निर्देर्शित भी की। निर्देशन के अलावा गुलजार ने कई फिल्मों की पटकथा और संवाद भी लिखे। इसके अलावा गुलजार ने वर्ष 1977 में किताब और किनारा फिल्मों का निर्माण भी किया। गुलजार को अपने गीतों के लिए अब तक दस बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। गुलजार को सबसे पहले वर्ष 1977 मे प्रदर्शित फिल्म घरौदा के दो दीवाने शहर मे, गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। उन्हें आने वाला पल जाने वाला है, गोलमाल, हजार राहें मुड के देखी, थोडी सी बेवफाई, तुमसे नाराज नहीं जिंदगी, मासूम, मेरा कुछ सामान आपके पास पडा है, इजाजत, यारा सिली सिली बिरह की रात का जलना, लेकिन, चल छइया छइया, दिल से, साथिया, साथिया और कजरारे कजरारे तेरे काले काले नैना, बंटी और बबली और दिल तो बच्चा है जी, इश्किया फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
   गुलजार को तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है इनमें वर्ष 1972 में कोशिश फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ स्क्रीन प्ले का पुरस्कार, वर्ष 1975 में मौसम फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और वर्ष 1987 में इजाजत फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का पुरस्कार शामिल है। गुलजार के चमकदार कैरियर में एक गौरवपूर्ण नया अध्याय तब जुड गया जब वर्ष 2009 में फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर में उनके गीत जय हो को आस्कर अवार्ड से सम्मानित किया गया। भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को देखते हुए वर्ष 2004 में उन्हें देश के तीसरे बडे़ नागरिक सम्मान पद्मभूषण से अलंकृत किया गया। 

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